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बेख़बरी / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
पड़ोसी के बच्चे को क्यों डाँटती हो
शरारत तो बच्चों का शेवा रहा है
बिचारी सुराही का क्या दोष इसमें
कभी ताजा पानी भी ठण्डा हुआ है
सहेली से बेकार नाराज़ हो तुम
दुपट्टे पे धब्बा तो कल का पड़ा है
रिसाले को झुँझला के क्यों फेंकती हो
बिना ध्यान के भी कोई पढ़ सका है
किसी जाने वाले को आख़िर ख़बर क्या
जहाँ लड़कियाँ होंठ कम खोलतीं हैं
परिन्दों की परवाज़ में डोलतीं हैं
महक बन के हर फूल में बोलतीं हैं