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बेचैन है प्राची नया सूरज उगाने के लिये / रंजना वर्मा
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बेचैन है प्राची नया सूरज उगाने के लिये।
धरती विनय करने लगी रवि प्यार पाने के लिये॥
है दूर तक अब भी अँधेरा देखिये चारो तरफ
संकल्प मन में चाहिए दीपक जलाने के लिये॥
भीषण उमस थी ग्रीष्म की व्याकुल नयन घन हेरते
वर्षा सुहानी कब मिली धरती सिराने के लिये॥
समझा नहीं मानव कभी भी चैन सुख के मूल्य को
हीरे जवाहर क्यों रखें जीवन बिताने के लिये॥
करता रहा खिलवाड़ यों ही यदि प्रकृति से सर्वदा
तरसा करेगा यह मनुज जल श्वांस पाने के लिये॥
करने लगा है यंत्र मानव का स्वयं निर्माण जो
देता कुल्हाड़ी पाँव पर कुछ सुख उठाने के लिये॥
कल्याण सब जग का करे अविवेक से यदि मुक्त हो
हो यत्न अब निज आत्म को प्रभु से मिलाने के लिये॥