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बेरोजगार गरीब बिचारे महंगाई तै डरगे / दयाचंद मायना

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बेरोजगार गरीब बिचारे महंगाई तै डरगे
इसा बखत आया रै लोग लुगाई तै डरगे...टेक

महंगाई के डंडे आगै, कापै नर नारी
कोण मिटावण आला सै, या गरीबी बेकारी
बड़े-बड़े विषियर मणिधारी गिजाई तै डरगे...

आपस के म्हं कटकै मरगे पाण्डू और कैरू
धरती और आसमान कांपगे, भैया और भैरू
इसी सिखा ग्या बन्दा नेहरू, बाई तै डरगे

बेरा ना कद बदलैगा, इन झूठां का दर्जा
ज्यादा बोलै कम तोलै, महंगाई का नरजा
अचल-विचल करदी प्रजा, राह-राही तै डरगे...

छल कपट बेईमाना कदसी होगा बंद
झूठा झगड़ा छाप काटना म्हारै ना पसंद
ये नकली भेड़िया ‘दयाचन्द’ की कविताई तै डरगे...