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बैठ्यो अँगना मे पिय आय परदेसन सोँ / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
Kavita Kosh से
बैठ्यो अँगना मे पिय आय परदेसन सोँ ,
ऊपर फुहारे नभ छिरकि छिरकि जात ।
इत नैन पीतम के ऊपर भ्रमत उठि ,
उत पट खुलि खुलि भरकि भरकि जात ।
पिय के बिलोकिबे को खिरकीन खिरकीन ,
फिरकी सरी सी तिय थिरकि थिरकि जात ।
इत उत चोरा चोरी झाँकन मे ताकै ,
हिय हारन के मोती मँजु छिरकि छिरकि जात ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।