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बौरे बन बागन विहंग विचरत बौरे / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
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बौरे बन बागन विहंग विचरत बौरे,
बौरी सी भ्रमर भीर, भ्रमत लखाई है ।
वैरी वर मेरी घर आयो न बसन्त हू में,
बौरी कर दीन्हों मोहिं विरह कसाई है ।
सीख सिखवत बौरी सखियाँ सयानी भई,
बौरे भये बैद कछु दीन्हीं न दवाई है ।
बैरी भरी मालिन चली है भरि झोरी कहा,
बौरी करिबे को औरों बौर यहाँ लाई है ।।