(राग बिहागरा-तीन ताल)
ब्राह्मण के गो-धन की रक्षा की अर्जुनने धर्म-विचार।
राज्य त्याग बारह वर्षोंके लिये किया समोद स्वीकार॥
तीर्थाटन करते पहुँचे वे सागर-तटपर तीर्थ प्रभास।
समाचार पा दूतोंसे आये श्रीकृञ्ष्ण सखाके पास॥
हृदय लगाकर मिले परस्पर नर-नारायण मित्र पवित्र।
प्रेम-सुधा-रस-सागर उमड़ा मधुर दशा शुचि हुई विचित्र॥