भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्लोक के लिए-1 / मरीना स्विताएवा
Kavita Kosh से
तुम्हारा नाम जैसे हाथ पर बैठी चिड़िया,
तुम्हारा नाम जैसे जीभ पर बर्फ़ की डली...
होठों का हल्का-सा कंपन ।
तीन अक्षरों का तुम्हारा नाम
जैसे उड़ती हुई गेंद आ गई हो हाथ में,
जैसे चांदी की घण्टी की टनटनाहट ।
तुम्हारे नाम का उच्चारण
जैसे शांत तालाब में पत्थर की छपाक
रात की धीमी-सी आहट के बीच
गूँजता है तुम्हारा नाम
कनपटियों के पास
जैसे बन्दूक के घोड़े का स्पर्श ।
तुम्हारा नाम...उफ़्फ़ क्या कहूँ !
जैसे चुम्बन कोमल कुहरे का
सहमी आँखों और पलकों पर,
त्म्हारा नाम जैसे बर्फ़ का चुम्बन,
नीले, शीतल झरने का पानी का घूँट ।
गहरी नींद सुलाता है तुम्हारा नाम ।
रचनाकाल : 16 अप्रैल 1916
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह