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ब्लोक के लिए-6 / मरीना स्विताएवा

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यही है वह, प्राए देशों से ऊबकर आया हुआ
नायक- अनुयायीविहीन ।

देखो, चुल्लू से पी रहा है दिव्य-जल वह
सम्राट- राज्यविहीन ।

सब-कुछ है वहाँ उसके लिए : साम्राज्य और सेनाएँ ।
रोटी और माँ ।

भव्य है तुम्हारा वैभव- मालिक बनो उसके तुम,
ओ मित्र- मित्रविहीन ।

रचनाकाल : 15 अगस्त 1921

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह