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भले खत्म हो जाये ये ज़िन्दगानी / मृदुला झा
Kavita Kosh से
नहीं खत्म होगी हमारी कहानी।
लगी कौंधने दामिनी की तरह वो,
मगर दे न पाई कोई भी निशानी।
धरा और गगन का है अद्भुत नजारा,
हरी ओढ़नी है कुसुम शेरवानी।
अकेले कहाँ तुम हूँ मैं साथ तेरे,
अभी खून मैं दौड़ती है रवानी।
ये भी बोलते हो मुझे भूल जाओ,
मगर बाँचते हो हमारी पिहानी।