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भादव राति अन्धार घोर, गरजै बादल बरषे जोर / भवप्रीतानन्द ओझा

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झूमर

भादव राति अन्धार घोर, गरजै बादल बरषे जोर
उमड़े बिजुली लहरी
बहे तूफान अति भयान
उखड़त तरु बलरी
कारागृहें जनमल आजु श्रीहरि
मोह रजनी मोहित प्राणी
अचेत सहित प्रहरी
देवकी गर्भ में प्रभु जनमल
नीलमणि जित वरण श्यामल
पीताम्बर पहिरी
चारि हाथ, लोकनाथ
कमल नयन छितरी
रूप हेरी पितु मातु चकित
करत स्तवन अन्तर प्रीत
शिशु कहे वाणी मधुरी
चलहु तात! मोहि ले साथ
गोकुल, नन्द नगरी
नन्दिनी जनम दये जशोमती
मोह निन्दा गत सगरो राति
ताहि के पास मोही धरी
नन्द सुता लेब, जननी के देब
देखत ने कोई नजरी
कृष्ण लये वसुदेव ठाढ़
चिन्तित देखी जमुना बाढ़
पार भेल एक सियरी
भवप्रीता गाय, बसुदेव जाय
कृष्ण राखी लेल शंकरी।