भारत को आहत कर आग क्यों लगाते हो।
अपने ही घर में क्यों दहशत फैलाते हो॥
बातें कर मजहब की अलग कर रहे हमको
जनता के दिल में क्यों नफरतें जगाते हो॥
भाई ही भाई के साथ न रहना चाहे
आँगन में तुम यों दीवार क्यों उठाते हो॥
आँखों ने देखे जो ख़्वाब न होते पूरे
फिर भी तुम आगत के ख्वाब क्यों सजाते हो॥
खेतों में बारूदी अंगारे बो कर तुम
अपने ही हाथों से देश को जलाते हो॥
सरहद पर फूट रही भीषण चिनगारी है
धधकते अँगारे घी किसलिये गिराते हो॥
पाँव टिके धरती पर इस सच को भूल गये
रेतीले टीलों पर घर नये बनाते हो॥