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भावदरिद्र / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
भाव-दरिद्र ख़ुश हैं
अपने से कम के बीच
कम दरिद्र अपने से
कम के बीच मस्त हैं
भाव-दरिद्र अपने से
कम के बीच ज्ञापित हैं
कम दरिद्र अपने से
कम के बीच थापित हैं
भाव-दरिद्र सारे
दरिद्रों को साथ ले
भाव भरे लोगों की
धज्जियाँ उड़ाते हैं
जितने भी गुणीजन
मिलते हैं इन्हें कहीं
वहीं ये उन्हें अपने
अहं से मिटाते हैं
फिर भी दरिद्र के
दरिद्र रहते भाव-दरिद्र
अंधों के बीच
काने करतब दिखाते हैं ।