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भीजत रीझत दोऊ आवत / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
भीजत रीझत दोऊ आवत।
रंग हिंडोरै झूलि मुदित मन सखियन मन सरसावत॥
उमगि-उमगि घन घनन-घनन धुनि गरजत भय उपजावत।
चपला चमकि-चमकि छिन-छिनमें घटा-छटा छहरावत॥
नाचत मोर मदन-मदमाते आनँद रस बरसावत।
प्रेमरसग्य पपीहा पी-पी धुनि करि मोद बढ़ावत॥
कदम-छाँह ठाढ़े भए दोऊ अंग-अंगनि लपटावत।
प्रिया-देह ढाँपी निज कामरि नेह ते मेह बचावत॥