भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं / हसरत मोहानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही<ref >हे ईश्वर!</ref> तर्के-उल्फ़त<ref >प्रेम न करने का प्रण</ref> पर वो क्योंकर याद आते हैं

न छेड़ ऐ हम नशीं कैफ़ीयते-सहबा<ref >मदिरा के प्रभावों</ref> के अफ़साने
शराबे-बेख़ुदी<ref >होश उड़ाने वाली शराब</ref> के मुझको साग़र<ref >जाम</ref> याद आते हैं

रहा करते हैं क़ैद-ए-होश<ref >चेतना की क़ैद में</ref> में ऐ वाये नाकामी
वो दश्ते-ख़ुद फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं

नहीं आती तो याद उनकी महीनों भर नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं

हक़ीक़त खुल गई ‘हसरत’ तेरे तर्के-महब्बत की
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़कर याद आते हैं

शब्दार्थ
<references/>