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भुलाये ही नहीं जाते बिताये जो सुनहरे पल / रंजना वर्मा

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भुलाये ही नहीं जाते बिताये जो सुनहरे पल।
कसक उठती हृदय में जब हुआ जाता जिया घायल॥

विरह की आग जब जलती सभी सुख चैन लुट जाता
ढलकने जब लगें आँसू नयन में कब टिका काजल॥

न जाने कब विकल मन पर गिरेंगी तृप्ति की बूँदें
उमस बढ़ती चली जाये हृदय नभ में घिरे बादल॥

हज़ारों पाप कर के भी सदा खुद को कहें पावन
करें क्या पाप नाशन को न मिलता स्वच्छ गंगाजल॥

कन्हैया साँवरे अब तो बुझा जा प्यास जीवन की
दरश की आस है फिर भी जिया होता रहे बेकल॥

सदा रहती दुआएँ हैं भरी आशीष ममता भी
सकल संसार के दुख को मिटाता है जननि आँचल॥

कहीं भी हम रहें फिर भी अवध की याद आती है
श्रवण रहती समायी नित्य सरयू की मधुर कलकल॥