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भैरव राग / प्रेमघन

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कहाँ गई घर वाली तेरी, कहाँ गई घर वाली,
मेरे सुख की देने वाली।
जब लगि रही निरादर कीनो नित उठि दीन्यो गाली।
निकल गई वह फतहूपुरतुम रोवो जइस डफाली।
डोलत भरतदास के पीछे लीन्हे सूरत काली।
तेल हाथ लै घूमत खोजत कहूँ अखाड़ा खाली॥