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मंजर भी आज देखिए नादिर हुआ जनाब / पवन कुमार
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मंजर भी आज देखिए नादिर हुआ जनाब
सजदे को मैं भी आपके हाजिर हुआ जनाब
जुगनू सा जल के बुझ गया हासिल हुआ न कुछ
अपना सफर तमाम बिलआख़िर हुआ जनाब
रुख़सत हुआ जो वस्ल का मौसम तो साथ-साथ
जो दर्द गुमशुदा था वो हाज़िर हुआ जनाब
मंजर = दृश्य, नादिर = अद्भुत/अनोखा, सजदा = माथा टेकना/सिर झुकाना, रुख़सत = प्रस्थान/जाना, वस्ल = मिलन