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मंज़िल उन्हें ठुकराती है बेकार समझ कर / अनु जसरोटिया

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मंज़िल उन्हें ठुकराती है बेकार समझ कर
रुक जाते हैं जो राह को दुश्वार समझ कर

मैं आज की सुखऱ्ी हूं जबीनों पे लिखी हूं
मत फैंकना कल का मुझे अख़बार समझ कर

सद शुक्र के तक़दीर ने ये दिन भी दिखाया
आऐ हैं वो मिलने मुझे बीमार समझ कर

पाला है तुम्हें हमने बड़े चाव से बच्चो
मत हमको गिराना कोई दीवार समझ कर

ये सच की डगर तो बड़ी दुश्वार डगर है
आना न इधर तुम कभी हमवार समझ कर

दुनिया की निगाहों में जो था एक तमाशा
हमने तो निभाया उसे किरदार समझ कर

शीरीं है बहुत उर्दू ज़बा इसलिए हमने
अपनाया है उर्दू को मज़ेदार समझ कर

हम सर को यंु ही अपने कहीं ख़म नहीं करते
सर हमने झूकाया है दरे-यार समझ कर