Last modified on 9 जुलाई 2011, at 21:57

मकान है घर नहीं / एम० के० मधु


छत के शहतीर
कील बन रहे
आँगन की तुलसी
काँटेदार नागफ़नी

डायनिंग टेबुल पर
चाय के प्याले
काँच-काँच किरकिरे

साँझा चूल्हा पर
रोटियाँ नहीं
पक रहा है मन
धुएँ का वन
है ये मकान
परन्तु घर नहीं ।