भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मकान है घर नहीं / एम० के० मधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


छत के शहतीर
कील बन रहे
आँगन की तुलसी
काँटेदार नागफ़नी

डायनिंग टेबुल पर
चाय के प्याले
काँच-काँच किरकिरे

साँझा चूल्हा पर
रोटियाँ नहीं
पक रहा है मन
धुएँ का वन
है ये मकान
परन्तु घर नहीं ।