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मक्कारीनामा / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
खोज रहा था माफ़ीनामा
हाथ लगा मक्कारीनामा
अस्पष्ट अबूझ लिपि जैसे बुदबुदाता है कोई फ़क़ीर
सुनाई पड़ता है सिर्फ़ हक़ !
जैसे पुरोहित चाहे जो पढ़ता हो पर सुनाई पड़ता है सिर्फ़ स्वाहा !
मिलाया, टोया टटोला तो पता चला
मक्कारी माफ़ी से जुड़ कर हो जाती है माफ़ीनामा
मक्कारी फिर माफ़ी
माफ़ी फिर मक्कारी
बारी बारी अब तक ज़ारी
करनी पड़ी इसके लिए सत्तर सालों की तैयारी
तपस्या
भोले भक्तों के कान फूँकने पड़े
भूख को भजन से भगाने की साधना
उत्सर्ग की जगह आराधना
पाँव छूओ सीना दागो
पब्लिक दौड़ाले तो भागो
पकड़ जाओ तो माफ़ी माँगो
सोच रहा हूँ करूँ विपर्यय
मक्कारीनामा खोजूॅं तो माफ़ीनामा स्वयं मिलेगा