भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मत बूझोॅ कि चोक छिकै ई / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत बूझोॅ कि चोक छिकै ई
जतरा परकोॅ टोक छिकै ई।

एक गरीबोॅ के जिनगी की?
विधवा केरोॅ शोक छिकै ई।

तोरोॅ अनुशासन के मतलब
हँसी-खुशी पर रोक छिकै ई।

सच कहबोॅ-सुनबोॅ जानी लेॅ
तलवारोॅ के नोक छिकै ई।

मीन-मेख नै करियोॅ धरियो
सारस्वतोॅ के लोक छिकै ई।