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मधुकर का क्या दोष है? / रामगोपाल 'रुद्र'
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यदि मुग्ध कमलिनी के मधु से स्वर के पर बरबस बँध जाएँ
तो मधुकर का क्या दोष?
जिसके ऊर्म्मिल उर पर झुकके रजनी ने लूट लिया, चुपके,
रत्नों का तारक-हार;
जिसका पीकर पीयूष, गरल तक पचा गया सुरलोक,
बचाकर केवल हाहाकार;
जिसके जीवन में आग लगा विधि ने सारी मधुता छीनी,
छीना कलरव-गुंजार;
जड़ता क वह शृंगार कि जो गलकर करुणा का तार बना,
बाँधे रज क संसार;
शशि के देखे से आपे में से वह रह न सके, लहरा जाए,
तो सागर का क्या दोष?