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मधुमक्खी / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।
शहद बनाना काम तुम्हारा।।
छत्ते में मधु को रखती हो।
कभी नही इसको चखती हो।।
कंजूसी इतनी करती हो।
रोज तिजोरी को भरती हो।।
दान-पुण्य का काम नही है।
दया-धर्म का नाम नही है।।
इक दिन डाका पड़ जायेगा।
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।
मिट जायेगा यह घर-बार।
लुट जायेगा यह संसार।।
जो मिल-बाँट हमेशा खाता।
कभी नही वो है पछताता।।