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मधुर मृदु सुंदर राजकुमार / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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मधुर मृदु सुंदर राजकुमार॥

स्यामल-गौर किसोर बंधु दो‌उ सुचि सुषमा-‌आगार।
कटि तूनीर, तीर-धनु कर महँ धीर बीर सुकुमार॥

जटा-जूट-मंडित, मुनि पट, उर-बाहु बिसाल उदार।
चले जात पथ, पग बिनु पनही रूप-सील-भंडार॥

उभय मध्य राजति श्रीजानकि सोभाम‌ई अपार।
अति निर्मल देखत मन उमगत श्रद्धा-सरिता-धार॥

बूझति पिय सौं चकित, कथा बन की करि, हृदय बिचार।
हेरि-हेरि सिय-तनु समुझावत प्रिया, भरे हिय प्यार॥

लखन सकुचि सोचत सिय-हिय की बात, न पावत पार।
धन्य ते, जिन निरखे इनहीं, भरि नैन सकल सुख-सार॥