भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मधु है मधुबन है / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
मधु है, मधुबन है, मधुमाते दृग भी फूले, तो अचरज क्या!
पतझर के पात सिहाते हैं,
'क्या मौसम है!' झुँझलाते हैं;
तरु-तरु तरुणाई झूल रही, मन भी झूले तो अचरज क्या!
बुलबुल का दिल जब छिलता है,
गुलशन में गुल तब खिलता है;
यदि दर्द तुम्हारे गीतों का दिल भी छू ले, तो अचरज क्या!
भौरों को कोई रोके तो!
पुरवा को कोई टोके तो!
तितली बन स्वप्न तुम्हारे भी भरमे-भूले, तो अचरज क्या!