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मध्या धीरा बरनन / रसलीन
Kavita Kosh से
रात को बिताय ज्योंही प्रात आए रसलीन,
त्योंही बोली बाल सकुचात लखि प्यारे कों।
नैन सनमुख मिलि दिवसह दीजै सुख,
कोक सम टारि रैन बिरह हमारे कों।
तब आन कीन्हे घात नैन मेरे हैं पिरात,
कैसे करि हेरों तुव मुख के उज्यारे कों।
बाम कह्यो जाने हम इंदिरा हुतीं सो अब,
चंद्रमा भई हौं दृग कँवल तिहारे कों॥35॥