भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन में गहरी पीर छुपी पर अधरों पर मुस्कान रहे / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन में गहरी पीर छुपी पर, अधरों पर मुस्कान रहे।
स्वयं सहें दुख किन्तु किसी को, कष्ट न हो यह ध्यान रहे॥

अगर कभी आ जायें यादें, मन की प्यासी बगिया में
छिपी रातरानी निकुंज में, खुशबू ही पहचान रहे॥

देश हमारा सब से न्यारा, सब से सरस अनोखा है
अपनी धरती के कण-कण पर, हमें सदा अभिमान रहे॥

दर्पण झूठ नहीं है कहता, है यथार्थ केवल इतना
चूर न हो जाये मन-दर्पण, सदा सत्य का भान रहे॥

नदी समय की बहती रहती, उठते रहते नित्य भँवर
बीच धार में डगमग नैया, दिशा पंथ अनजान रहे॥

पर अपकार किया यदि केवल, स्वार्थ हेतु तो उचित नहीं
कर्म श्रेष्ठ है वही जगत में, मान रहे सम्मान रहे॥

ज्ञान मान में मानवता में, दया कृपा या करुणा में
विश्व प्रगति कितनी भी कर ले, सब से देश महान रहे॥