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मन में है बसा वही मधुर मुख / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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ओइ मधुर मुख जागे मन ।
भुलिब ना ए जीवने, की स्वपने की जागरणे ।।
मन में है बसा वही मधुर मुख ।
जागूँ या देखूँ मैं सपना, लगे वही अपना ।।
जीवन में भूलूँगा कभी नहीं ।
जानो या जानो न तुम ।।
मन में है बजे सदा वही मधुर बाँसुरी ।
मन में जो बसे तुम ।
बता नहीं पाऊँ ।
इन कातर नयनों में वही रखूँ सनमुख ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 9 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)