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ममत्व से दूर / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
बछड़ा दूध पीता
तब तक ही पहचानता माँ को
रँभाते वक़्त भी
यही ध्वनि निकलती कंठ से उसके
बड़ा होते बढ़ने लगते
माथे पर सींग
ममत्व से जो भी दूर जाता
पशुत्व के क़रीब होता
जहाँ पूरी दुनिया ही उसे
अपनी चरागाह लगती है।