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मयस्सर हमें कोई ऐसा जहाँ हो / अज़ीज़ आज़ाद

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मयस्सर हमें कोई ऐसा जहाँ हो
जहाँ दाना-पानी हो इक आशियाँ हो

तरसते हुए हम कहीं मर न जाएँ
कभी ज़िन्दगी का हमें भी गुमाँ हो

गिरे आशियाने शजर कट रहे हैं
हमारे भी सर पर कोई सायबाँ हो

जहाँ पास रह कर हैं सब अजनबी-से
मिले कोई अपना कोई हमज़बाँ हो

फ़सादों से सारा चमन जल न जाए
यहाँ प्यार का कोई दरिया रवाँ हो

परिन्दे तो उड़ते हैं ‘आज़ाद’ हर सू
हमारी ही ख़ातिर हदें क्यूँ यहाँ हो