भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मय-ओ-मीना से यारियाँ न गईं / हसरत मोहानी
Kavita Kosh से
मय-ओ-मीना<ref>शराब और बोतल</ref> से यारियाँ न गईं
मेरी परहेज़गारियाँ न गईं
मर के भी ख़ाके-राहे-यार हुए
अपनी उल्फ़त-शुआरियाँ<ref>प्रेम</ref> न गईं
अश्कबारी से सोज़े-दिल<ref>हृदय-ताप</ref> न मिटा
आह की शोलाबारियाँ <ref>आग बरसाना</ref>न गईं
हुस्न की दिलफ़रेबियाँ<ref>आकर्षण</ref> न घटीं
इश्क़ की ताज़ाकारियाँ न गईं
सबने छोड़ा तुझे, मगर ’हसरत’
दर्द की ग़मगुसारियाँ<ref>मैत्री</ref> न गईं
शब्दार्थ
<references/>