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महानायक / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
आधी रात में नंगे पैर मंदिरों और दरगाहों की ओर
छिप कर जाता हुआ वह काँप रहा है
ग्रह-नक्षत्रों और सितारों के संभावित कोप से
मगर यहाँ गड़ी और गाई जा रही हैं
उसके साहस और शौर्य की पराक्रम-गाथाएँ
सरेआम कितनी सफ़ाई से छिपा रहा है वह
मसीहा के विशाल मुखौटे में अपना लालची चेहरा
मगर यहाँ सुनी और सुनाई जा रही हैं
उसकी महानता और उदारता की किंवदंतियाँ
रंग-बिरंगे काँचों के पीछे
शहर की बसे ऊँची छत पर रच रहा है वह
एक शानदार और मायावी तमाशा
मगर यहाँ देखी और दिखाई जा रही हैं
उसकी अश्रुपूर्ण और भाव-प्रवण करुण-कथाएँ
वह महानायक है इस पाखण्डी समय का
जय-जयकार के शोर के बीच तुम्हारा कुछ भी कहना
बेतुका तो है ही
एक ख़तरनाक गुस्ताख़ी भी।