माँ के मन्दिर शीश को अपने झुका कर देखिये / रंजना वर्मा
माँ के' मंदिर शीश को अपने झुका कर देखिये
भावना के पुष्प चरणों में चढ़ा कर देखिये
एक पल में कष्ट का कर दे निवारण अम्बिका
सामने उस के जरा मस्तक नवा कर देखिये
बाँह फैलाये हमेशा गोद लेने को खड़ी
भूल कर अभिमान थोड़ा पास जाकर देखिये
लोग माँ के द्वार जा कर मांगते हैं आसरा
जगज्जननी को कभी घर पर बुलाकर देखिये
ओढ़ कर चुनरी लगाकर आँख में काजल खड़ी
खूब बरसेगी ख़ुशी गजरा पिन्हा कर देखिये
मोह माया त्याग कर सर्वस्व का अर्पण करें
स्नेह की बरसे घटा माँ को रिझा कर देखिये
कीजिये माँ को समर्पित अब हृदय की मूढ़ता
कर गुनाहों को क्षमा देगी बता कर देखिये
द्वार पर दुर्गा खड़ी जगपालिका जगदम्बिका
नाश हर दुर्गति करे दुर्गति सुना कर देखिये
बार इक आना बहुत है द्वार है माँ का खुला
झूठ है संसार माँ का प्यार पा कर देखिये