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मां की टेर / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
सदी के इस महाकुंभ में
सूर्य की रश्मियों के बीच
मैंने तुम्हें
बांहें फैलाए
आंसुओं में बिलखते देखा
मां!
हां, तुम ही थी मां
होठों पर तुम्हारे
एक टेर थी-
‘मेरे लाल’
मुझे छोड़कर तू कहां गया?
और मां का वह लाल
जिसे अपने रक्त और
आंसुओं से सींचकर
बड़ा किया था
वह प्रयाग की इस त्रिवेणी में
अपने पापों को धोने
के साथ
अपनी इस गठरी का
बोझ भी
उतार गया.