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माधव! करौ बचन निज याद / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
माधव ! करौ बचन निज याद।
आज-काल्हि करि काल बितावत, जनम जात बरबाद
मग जोहत दृग दृष्टि गई, नख कुचरत भुवि दिन जात।
दिन-दिन मास-बरस सब बीतत, निसि रोवत बिललात॥
आवैं अब, अब ही आवैंगे, यहि आसा दिन बीतै।
आवन-मिलन भए दुर्लभ, दिन बीतत रीतैं-रीतैं॥
जीवन भयौ मरन, चेतन हू भयौ अचेतन प्यारे !
तन-धन-भूषन-बसन भार ह्वै लगत अगिनि-सम सारे॥
मृदु-मधु बचन सुनाइ, तबै तुम उपजायौ बिसवास।
अब बिस्वास-घात करि, मोकूँ ?यौं करि रहे निरास॥
बिरह-अगिनि अति प्रबल बरि रही, पल-पल जुग-सम जात।
अब तौ बेगि मिलौ, जीवनधन ! करि साँची निज बात॥