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माना तेरे होठों पे खुशियों के तराने हैं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
माना तेरे होठों पे खुशियों के तराने हैं
आँखों में हमारी भी आँसू के ख़जाने हैं।
बरबाद मुहब्बत ने आबाद किया हमको
तपती हुई रेतों में कुछ सपने सुहाने हैं।
नफ़रत भी न कर पायें, उल्फ़त भी न कर पायें
खुशबू में डूबे हुए ख़त तेरे पुराने हैं।
जो ख़्वाब थे देखे कभी दो दिन में वो टूट गये
काँटे जो चुभे दिल में पलकों पे सजाने हैं।
ऐ दोस्त हमारे वक्त अब मेल नहीं खाते
तू आज का सच ठहरा हम गुज़रे ज़माने हैं।