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मिलके आँखें हैं छलछलायी क्यों / गुलाब खंडेलवाल


मिलके आँखें हैं छलछलाई क्यों!
तीर पर नाव डगमगाई क्यों!

अब उन्हें किस तरह मनाया जाय
रंज हैं जो, हँसी भी आई क्यों!

लाख बातें बनायी हैं हमने
बात पर एक बन न पाई क्यों?

मोल कुछ भी न मोतियों का जहाँ
आँसुओं ने हँसी कराई क्यों!

कुछ तो प्याले में था ज़हर के सिवा
ज़िन्दगी पीके मुस्कुराई क्यों!

बचके निकले गुलाब से तो आप
फिर भी आँखों में यह ललाई क्यों?