Last modified on 5 जुलाई 2011, at 00:34

मिलने की हर ख़ुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ / गुलाब खंडेलवाल


मिलने की हर ख़ुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ
एहसान उनका ख़ूब हुआ फिर भी कम हुआ

कुछ तो नज़र का उनकी भी इसमें क़सूर था
देखा जिसे भी प्यार का उसको वहम हुआ

नज़रें मिलीं तो मिलके झुकीं, झुकके मुड़ गयीं
यह बेबसी कि आँख का कोना न नम हुआ

ज्यों ही लगी थी फैलने घर में दिए की जोत
त्योंही हवा का रुख़ भी बहुत बेरहम हुआ

कुछ तो चढ़ा था पहले से हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ

आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से आज
लगता है अब गुलाब का खिलना भी कम हुआ