भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुँहफट लोग / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब हर कहीं देखी जा रही हो
विरुदावली गायकों की ज़मात
या ठकुर-सुहाती के प्रवीणों का काफ़िला
तब बीते हुए काल के
मुँहफट आदमी को याद करना
हिमाक़त नहीं तो और क्या है?

बड़े लोगों और उनके दरबार की बात छोड़ो
ग़ौर करो अपने आसपास
दोस्तों की सहज और मामूली बातों पर
तुम पाओगे कि
साफ़गोई से बोलना
और कहना अपनी बात बिना डरे
पुरानी चवन्नी और अठन्नी की तरह
चलन से बाहर हो चुका है

इस चौकन्ने समय में
सावधानी से बोलते हुए हम
पहले भाँपते हैं सामने वाले का चेहरा
और फिर बुरा न बनने की क़वायद में कुछ कहते हुए
छिपाते हैं खु़द को अपनी ही ओट में

कठिन और शातिर लड़ाई में
पराजित योद्धा की तरह
समय से बाहर कर दिये गये
मुँहफट लोग अब इतने कब बचे हैं
कि उन्हें एक दुर्लभ प्रजाति की तरह
बचाने की ज़रूरत है।