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मुख - 1 / प्रेमघन
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न हेरहु व्यर्थ कोऊ उपमा, मन मैं न मसूसहु मानि अयान।
सुनो घन प्रेम प्रवीन नवीन, गिरा मन मोहिनी पै धरि ध्यान॥
दोऊ दृग बान धरे मुख मंडल, भूपित भौंहन को कलतान।
मनो अलकावलि राहु विलोकत, मारत चन्द चढ़ाय कमान॥