भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे देखते रहे जो बड़ी बेरुख़ी से पहले / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
मुझे देखते रहे जो बड़ी बेरुख़ी से पहले
मेरे नाम पर हैं रोते, वही अब सभीसे पहले
मैं नहीं था फिर भी मुझको तेरा दिल पुकारता था
मेरा प्यार जी रहा था, मेरी ज़िन्दगी से पहले
यही मुश्किलें हैं देतीं अहसास ज़िन्दगी का
मुझे ग़म भी थोडा दे दे, मेरी हर ख़ुशी से पहले
कई बार यों तो आयीं तेरे बाग़ में बहारें
ये गुलाब पर कहाँ थे मेरी शायरी से पहले!