Last modified on 10 फ़रवरी 2010, at 08:44

मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ४९

निज प्रियतम के विशद विश्व में और न कुछ करना मधुकर
निरुद्देश्य उसके गीतों को झंकृत कर देना निर्झर
पंकिल भर देना निज कोना बहा गीतधारा प्रभुमय
टेर रहा अर्चनोद्वेलिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४१।

जग उत्सव मे प्राणनाथ का मिला निमन्त्रण है मधुकर
आशीर्वादित हुये प्राण दृग देखे सुने श्रवण निर्झर
भीतर पहुच अतंद्र देख ले प्राणेश्वर मुखचन्द्र विमल
टेर रहा आमंत्रणस्वरिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४२।

इसीलिये इतना विलम्ब है भूल चूक पंकिल मधुकर
सबने अपने दृढ़ नियमों मे तुमको बाध रखा निर्झर
फेर फेरनेवालों से मुख उसके पद पर रख दे सिर
टेर रहा है पथप्रतीक्षिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४३।

ग्रीष्म शरद वासर वासन्ती कितने गये बीत मधुकर
यह न तिमिरमय निशा पावसी जाये व्यर्थ रीत निर्झर
बहिर्द्वार पर बैठ अकेले कर न प्रतीक्षा अब पंकिल
टेर रहा प्रियमिलनपावसी मुरली तेरा मुरलीधर।२४४।

यदि न बोलते प्रिय तो उनका गहन मौन ले भर मधुकर
शान्त निशा सा नत शिर कोने खडा प्रतीक्षा कर निर्झर
चरणन्यास द्रुत उषा करेगी खोल असशय तिमिर पटल
टेर रहा है धैर्यत्रिपथगा मुरली तेरा मुरलीधर ।२४५।