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मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ५०

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सहनशील रजकण प्रशान्त बन प्रभुपथ में बिछ जा मधुकर
किसी भाँति उसके पदतल मे ललक लिपट लटपट निर्झर
प्राणकुंज के सुमन सुमन में सुन उसकी मनहर बोली
टेर रहा अर्पणानुभावा मुरली तेरा मुरलीधर।२४६।

हो न रही मारुत सिहरन की क्या अनुभूति तुम्हें मधुकर
क्या न सुन रहे दूर तरंगित राग रागिनी स्वर निर्झर
बहा जा रहा है प्रियतम स्वर छूता अपर कूल पंकिल
टेर रहा है अनुरक्तिअन्तरा मुरली तेरा मुरलीधर।२४७।

निशिवत मौन दबे पद चुपके बन्धन तोड़ प्राण मधुकर
शून्यगली मे इतस्ततः घूमता सुहृद तेरा निर्झर
निकल न जाय स्वप्नसम चुपके दबे चरण रख खुला निलय
टेर रहा है मुक्तकपाटा मुरली तेरा मुरलीधर।२४८।

करो विनय जब राही की सब शक्ति छीज जाये मधुकर
यात्री मे दीनता लाज की चीज नहीं आये निर्झर
निज रजनी की करुणा से सींचे दे पुनः नवल जीवन
टेर रहा यात्रापाथेया मुरली तेरा मुरलीधर।२४९।

थकित दिवस दृग पर रख पंकिल रजनी अवगुण्ठन मधुकर
और कौन वह ही तो लेता हर वासर पीड़ा निर्झर
विश्वासी मन बन प्रिय की गोदी में कर निर्द्वंद्वशयन
टेर रहा है द्वंद्वविरामा मुरली तेरा मुरलीधर।२५०।