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मेरा विद्यालय / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
विद्या का भण्डार भरा है जिसमें सारा ।
मुझको अपना विद्यालय लगता है प्यारा ।।
नित्य नियम से विद्यालय में, मैं पढ़ने को जाता हूँ ।
इण्टरवल जब हो जाता मैं टिफ़न खोल कर खाता हूँ ।
खेल-खेल में दीदी जी विज्ञान-गणित सिखलाती हैं ।
हिन्दी और सामान्य-ज्ञान भी ढंग से हमें पढ़ाती हैं ।।
कम्प्यूटर में सर जी हमको रोज़ लैब ले जाते है ।
माउस और कर्सर का हमको सारा भेद बताते हैं ।।
कम्प्यूटर में गेम खेलना सबसे ज़्यादा भाता है ।
इण्टरनेट चलाना भी मुझको थोड़ा सा आता है ।।
जिनका घर है दूर वही बालक रिक्शा से आते हैं ।
जिनका घर है बहुत पास वो पैदल-पैदल जाते हैं ।।
पढ़-लिख कर मैं अच्छे-अच्छे काम करूँगा ।
दुनिया में अपने भारत का सबसे ऊँचा नाम करूँगा ।।