मेरा हाथ छोड़, कमजात छोड़ दे / दयाचंद मायना
मेरा हाथ छोड़, कमजात छोड़, दे घात छोड़, उत्पात छोड़
बुरी बात छोड़, भौ सात छोड़ के नफा कमावैगा रे पापी...टेक
छोड़ दे मेरा हाथ बदकार, मनै मत बीर समझिए जार
मैं सू नार सती, मेरा एकए पति, ना झूठ रती, हट दूर कती
वो मूढ़ मती, हो तेरी बुरी गती, जो मनै सतावैगा रे पापी...
मनै क्यूं दुख दे सै और नया, मेरा जी फन्दे के बीच फह्या
कर दया धर्म, कुछ ल्याज शर्म, मैं बीर नर्म, क्यूं होया गर्म
जा फूट भरम, यो बुरा कर्म, तेरे आगै आवैगा रै पापी...
पैनी छुरी समसीर मारै सै, गुप्ती चोट तीर मारै सै
बीर मारै हँसकै, शस्त्र कसकै, इनसे खसकै, उजड़ै बसकै
मोह मैं धँस कै, मरैंगे फँसकै, न्यू मर जावैगा रे पापी...
पापी लोग पाप के भरे, करते जुलम ना कती डरे
हरे हरे राम, कर सिद्ध काम, गिरते नै थाम, गुरु मुंशी राम
सांकोल गाम, गंगा किसा धाम, ‘दयाचन्द’ कल न्हावैगा रे पापी...