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मेरी आंखों में ये ख़ला क्या है / ध्रुव गुप्त
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मेरी आंखों में ये ख़ला क्या है
तू अगर साथ है, ज़ुदा क्या है
सबने दो-चार हर्फ़ लिख डाले
मेरे चेहरे में अब मेरा क्या है
रास्ते की तलाश है सबको
अब सिवा इसके रास्ता क्या है
मेरे हर नक्श का पता है उसे
आईना मुझको जानता क्या है
मुझसे हटके ज़रा सा चलता है
मुझमें एक और दूसरा क्या है
तेरे होने से तसल्ली थी यहां
तू अभी है जहां, वहां क्या है
कभी क़ुरबत है, फ़ासले हैं कभी
दरमियां अपने बेमज़ा क्या है
हमको जीना नहीं आया वरना
ज़िंदगी जश्न के सिवा क्या है