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मेरी इबादतों में छिपा है ख़ुशी का राज़ / सिया सचदेव

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मेरी इबादतों में छिपा है ख़ुशी का राज़
सज़दे बता रहे हैं मिरी बंदगी का राज़

ऐ रह-रवानी शौक़ संभल कर क़दम बढ़ा
तू जानता नहीं है अभी रहबरी का राज़

महसूस कर रही हूँ बदन की हरारतें
पर जानती हूँ रूह की पाकीज़गी का राज़

जो हो सके तो ग़म में ख़ुशी को तलाश कर
मुमकिन है क़ह्क़हों में मिले ज़िन्दगी का राज़

दर दर भटक रही हैं जो मेरी मुसाफ़तें
मैं सोचती हूँ क्या है मेरी गुमरही का राज़

मिल कर किसी बुज़ुर्ग से महसूस ये हुआ
लम्हों में क़ैद हो गया जैसे सदी का राज़

किसको तलाश करती हैं बीनइयाँ मिरी
मुझ पर खुला नहीं है मेरी दीदनी का राज़