मेरे घर की बालकनी में / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
मेरे घर की बालकनी में, इक चिड़िया आई।
बेटे के मन को वो, मेरे; बहुतेरी भाई।
फुदक फुदक कर चिड़िया रानी, ले आती दाना।
समय समय पर घबरा जाती, वह हमसे माना।
लेकिन, बेटा बोला; दाना, दो इसको पापा।
झट से दौड़ पड़े, दाना तब, ले आये पापा।
खाना है मिलजुल, चिड़िया ने, हमको सिखलाई।
मेरे घर की बालकनी में, इक चिड़िया आई।
सुबह सुबह की बात बताऊँ, ध्यान लगा सुनना।
तिनकों से भी घर बनता है, तुम भी ये गुनना।
वो ही चिड़िया, दूर-दूर से, लाती है तिनके।
बहुत शक्ति से भरे हुये हैं, बच्चो पर इनके।
तिनकों से घर बनाके चिड़िया, लेती अँगड़ाई।
मेरे घर की बालकनी में, इक चिड़िया आई।
कुछ दिन के फिर बाद हुये, दो बच्चे रानी के।
फुदक फुदक कर हर्षाता मन, चिड़ी सयानी के।
मुँह से मुँह में दाने देती और सुला देती।
उड़ना उन्हें सिखाकर सबसे, मिला जुला देती।
रोज उन्हीं को देख बनी, दिनचर्या सुखदाई।
मेरे घर की बालकनी में, इक चिड़िया आई।
मेरे घर की बालकनी में, इक चिड़िया आई।
बेटे के मन को वो, मेरे; बहुतेरी भाई।