मेरे जीवन का अधिक कोण न्यून हो जाये / अमन मुसाफ़िर
मेरे जीवन का अधिक कोण न्यून हो जाये
मेरे स्नेह की गिनती जो शून्य हो जाये
शून्य प्रतिशत का प्यार ऐसे फिर निभाना तुम
शून्य को साथ में अनंत तक बढ़ाना तुम
मेरे दर्दों में तो आरोह का क्रम चलता है
और रिश्तों में फिर अवरोह का क्रम चलता है
पूरे जीवन की ज्यों त्रिज्या सिकुड़ती जाती है
वृत्त के क्षेत्रफल में मोह का क्रम चलता है
मोह दुनिया से शून्य,तुमसे सबसे ज्यादा हो
कोई ऐसा ही फॉर्मूला फिर लगाना तुम
मेरी चाहत को जमाना ये घटा देता हैं
आँकड़े खुशियों के जीवन से मिटा देता है
मेरी उम्मीद न-उम्मीद से कट जाती है
काट के पीट के अंतर को बढ़ा देता है
जोड़-घटाव-गुणा-भाग निकट ना आए
ऐसी रेखा हमारे पास में बनाना तुम
मिलके जीवन का गणित एक नया बनाएँगे
जमा घटा को जोड़ के जमा बनाएँगे
वर्ग आनंद का वह ग़म का वर्गमूल रहे
प्रेम का यह समीकरण बड़ा बनाएँगे
जब भी प्रश्नों को करके हल बहुत मैं थक जाऊँ
अपनी बाहों के वृत्त में मुझे सुलाना तुम