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मैं, तुम और वह / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
तुम नगपति हो, तुम हो विशाल
हिमकिरीट हो तुम
हो तुम भारत के भाल
पांव तुम्हारे अडिग धरा पर
सच है यह सब
यह भी सच है
तुम चुनौती हो ऊंचाई की
फिर भी देखो
पांव तुम्हारे रेत हो रहे।
झेल रहे हो
हवाओं में तैरता फैलता
आदमी का ज़हर
यह ज़हरीली हवाएं
छोड़ देती हैं
ओज़ोन पर काले दाग़
तुम्हें करती हैं बेनकाब
बिखरा हुआ आसपास
हरियाली का बौनापन
तुम संकट में
हम संकट में
लड़नी है
हम सबको अस्तित्व की
एक लम्बी लड़ाई
ओज़ोन को/ मुझे/और तुम्हें भी.